नगरिकता मइहन नारी पुरुष समानता कै सिद्धान्त

राजनीतिशास्त्र केर सब सिद्धान्त भौतिक शास्त्र के सिद्धान्त मेर सार्वदेशिक औ सर्वकालिक नाहिउं होय सकत हैैं । ई नाते से सब राज्यन मा, हियाँ तक कि एक्कै नाव केर राजनीतिक ब्यवस्था वाले अलग अलग राज्य तक अलग अलग सिद्धान्त, ब्यवहार औ परिपाटी से संचालित हैं । राज्यन केर अपन अपन स्थिति परिस्थिति अनुसार नीति औ ब्यवहार प्रदर्शन करै केर स्वतन्त्रता होय के नाते से राज्यन कइहन सार्वभौम सत्ता सम्पन्न कहा जात है ।
राज्य अपने देश औ नागरिक लोगन कै सर्वाेच्च हित के खातिर अधिकार मइहा नियमन, नियंत्रण औ कटौती तक करत है औ राज्य के निवासी मध्ये कै अधिकार के सवाल मा कुछ केर ऊँच नीच होय सकत है । ई साइत कुछ लोग नागरिकता केर एक बात उठावत हैं । (१) नेपाल केर नागरिक बिहाव कइकै जौन विदेशी बहू लावत है औ उका जस नागरिकता दीन जात है वही मेर नेपाली बिटिया केर बिहाव विदेशी मर्द से होत है तौ ऊ विदेशी दमादौ कइहन नेपाली नागरिकता दीन जाय । (२) विदेशी दमादौ से जन्मे सन्तान कइहन नेपाली बिटिया के नागरिकता के आधार नागरिकता दीन जाय ? आऔ इमा बतुवावा जाय ।
विदेशी दमाद के खातिर नागरिकता माँग ः

ई माँग गैरसरकारी संस्थन के अगुवाई मइहा उठा करत हैं । नगरिकता संवेदनशील विषय होय । ई खाली सामाजिक अधिकारै नहोय , ई तौ राजनीतिकौ अधिकार होय जिससे राज्य औ नागरिकन के अस्तित्व औ जीवनौ पर प्रभाव परत है । नेपाल मेर छोटमोट औ खुला सीमाना औ वहू मैहन तीन लँग से तौ बिना सोधपूँछ, बिना वीजा, मनपरी आवागमन होय वाले देश कइहाँ, दोसरे पश्चिमा देशन केर नकल कइकै कानून बनावै केर मतलब आत्महत्या करब है । ।
(१) नेपाली पुरुष विदेशी, औ खास कइकै भारतौ से बिहाव केर चलन है । कोई कोई अल्पसंख्यक जाति कै नागरिक तौ नेपालमा सजातीय बिहाव नाय पावत हैं तब भारत से दुलहिन लौहिन परत है । लकिन दमाद केर बात पर आवा जाय तौ, काम केर खोजी मइहन नेपाल आवै वाले पुरुष अच्छा पढ,े लिखे ज्ञानी, बुद्धिजीवी औ गुणवान लोग नेपाल प्रवेशी केर संख्या बहुतै कम है, नगण्य है । काहेसे बिना नागरिकता के, ई मेर आदमी कइहन उके योग्यता अनुसार काम तौ मिली ना, तब ऊ काहे आई ?
लकिन अनियन्त्रित रुपसे बच्चा जन्मावै के मानसिकता से बोझिल जनसंख्या मइकै मजदूर कुली कबाडी, सडक छाप ब्यापारी, फेरीवाले आदि लोगन केर २०४६ साल के बाद निरंतर नेपाल प्रवेश बाढ मेर होइ रहा है । इनके साथै अफगानी, पाकिस्तानी बंगाली आदि एक मेर चेहरा मोहरा के लोग खुल्ला सीमाना कै लाभ उठाय के भारत के रस्ता से धार्मिक उन्माद, राजनीतिक प्रभाव आदि तमाम उद्देश्य लइकै बेरोकटोक नेपाल मा प्रवेश करै केर औ हवाई जहाज अपहरण तक कै आतंकवादी घटना से सभै परिचित हन, जे देखौ ते अपन अड्डा बनाए है ।
ई मेर निकम्मा जनसंख्या, औ जे गलत उद्देश्य से परिचालित होइकै आवा है ऊ, नेपाल मा पाँव गडावैक के खातिर योजनाबद्ध, औ सबसे सहज तरीका नेपाली नागरिकता वाली लडकी का फँसाय के बिहाव करैक है । जादातर आगन्तुक नेपाल आवै के बाद पहिले तौ कोई नागरिक लडकी भगाय के विहाव करत हैं । कोई बिचारी बिटियय तौ जान अनजान सवतियौ पाय जाति हैं, लकिन करैं तौ का करैं, जब फँँसि गईं औ लौटै केर रस्ता नाइ है तब का करैं ? हाँ तौ ई दमादन केर लक्ष्य नागरिकता रहत है । भारत से दुलहिन “लावब” औ दमाद केर “आवब” अलग अलग चीज होय । दुलहिन लाए से राष्ट्र् पर संकट आवै वाला नाइ है । लकिन निश्चित उद्देश्य के साथ आवै वाली “भीड” से राष्ट्र्यि संकट आवै केर संभावना से इनकार नाय कीन जाय सकत है ।
(२) नेपाली महिला से जन्मे सन्तान का महतारी के नाम से नागरिकता पावै वाली जौन आवाज है, वहू केर निरुपण उप्पर (१) नम्बर मा होइगा है । यहू दमाद से जुटा विषय होय । भारत या अन्य विदेश मा विवाहित कोई नेपाली नागरिक कै बेटी पति कै स्वर्गबास या अन्य कोई कारण से अवहेलित तिरस्कृत होइकै अपने नइहर देश आइ जात है तौ हियाँ अपने जीवनकाल तक के खातिर नेपाली नागरिकता लइकै औ नागरिक अधिकार केर पूर्ण उपभोग करैक व्यवस्था तौ हइयय है । उनकै सन्तान होय गए हैं तौ उनके बाप के घर मा उनकै अंश हक रहतै है । अपवाद मा कोई दुख पावा होइ सकत है । लकिन नेपाली बेटी के संतान कइहन नागरिकता देय केर नीति बनाय के देश हाँकैवाली बात तौ दमादन कइहन नागरिकता देय वाली बात होइबै करै ।
वंश परम्परा मा समानता नाय होय सकत है ः

नेपाल केर विशिष्ट भौगोलिक अवस्था, राजनीतिक ब्यवस्था, हिन्दू, मुश्लिम, बौद्ध, ईसाई जनता केर सांस्कृतिक औ धार्मिक बहुदेशीयता आदि के नाते नेपाल मइहन नारी पुरुष केर नागरिकता मा समानता केर ब्यवस्था से , देश केर अवस्था औ ब्यवस्था से लइकै संप्रभुता तक प्रभावित होइ सकत है । ई देश मइहा वंशज के नागरिकता सिद्धान्त पर बेटी के आधार पर दमादौ कइहाँ नागरिकता देना देश हित अनूल बिलकुल नाइ है । ई प्रयोजन के खातिर महिला या पुरुष दुइ मइसे वंश परम्परा चलावै वाला सामाजिक मान्यता प्राप्त खाली पुत्र के तरफ की शाखा कैहन वंश केर राजनीतिक उत्तराधिकारी मानै केर अवस्था है ।
नागरिकता के संदर्भ मइहन वृक्ष केर अउर शाखा प्रशाखा मने बिटिया केर पक्ष औ औरौ फलफूल भावनात्मक प्रेम अउर सद्भाव केर पात्र भर होइ सकत हैं , औ होंय । अधिकांश समाज अउर देशकेर मूल सामाजिक सडक जब पुरुष प्रधान है औ सामाजिक सांस्कृतिक मूल्य पुरुष प्रधानता कै सिद्धान्त पर शताब्दियन से टिका है ,मान्य है औ चलत है तब कुब्यवस्था काहे फैलावत जात हौ । अब तौ पूर्व पश्चिम राजमार्ग औ अन्य सडक यातायात शिक्षा औ संचार के विकास के वजह से तराईवासी अपने देश के भितरै शादी विवाह करै लागे हैं, इमा अन्तरजातीय औ अन्तर समूदायिक बिहावौ केर भूमिका बढतै जात है । औ माओृवाद के टाइम से भारत केर देशी अब नेपाल मा लडकी केर बिहाव करैक बहुतै कम होइगा है, तब एक्का दुक्का बिहा से बाहेर केर कोई बहू आइउ जइहैं तौ कौन खास बात होइ जाई जबकि नेपाली बिटियय बाहेर जाय रही हैं ।
नेपाली बेटी के विदेशीे पति का विदेशी बहू जस नागरिक मानै के खातिर बिटिया दमाद नाती नतिना के तरफ वंश माना जाय तौ दमाद के घर के तरफ केर का होई ?समाज औ देश का नारी प्रधान मानैक एक तौ सामाजिक संस्कृति से अनमेल होत है औ दूनौ तरफ तौ चलि नाय सकत है । कि तौ पितृसत्तात्मक वंशज खारिज करैक परी तब तौ मातृसत्तात्मक राज्य बनि पाई । तब यहौ तौ समानता न रहि जाई ? रहैक परि एकै तरफ । देश विदेश, बडे आधुनिक देश तक, सब कहूँ वंश परम्परा औ जाति वर्ग परिवारिक पहिचान केर नाम पुरुष के तरफ से होत है । यही मारे ई मेर सामाजिक ब्यवस्था बनी है । इकै मतलब भेदभाव न होय, ई तौ नियामक परिपटी होय । इकै विकल्प नाय देखात है ।
देश केर दुश्मन तौ नबनौ ः दोसर बात, जौ ई मेर ब्यवस्था दुर्भाग्य से होइ जात है तौ नेपाली बिटियन कइहन बिहा करै के खातिर विदेशी नीक बेकार सब मेर केर बाहेर केर असामाजिक तत्वन के खातिर ई ब्यवस्था स्वप्नमहल साबित होई, दमादन केर बाढि आय जाई औ कतनी विकृति, घटना औ अशान्ति होई कि अनुमान करब कठिन है ।
बहू तौ सौम्य, संस्कारी, नारी जाति मर्यादित तरीका से लाई जात हैं , लकिनं पुरुष वर्ग , चालाक, स्वतन्त्र मस्तिष्क केर, जादातर नेपाल पर भार साबित होयवाले कुली कबाडी , और गैरद्वारा परिचालित होत रहै वाले या सरलता से गलत काम मा लाग सकै वाले, अधिकांशतया ननियउरे जाय मेर दमाद तौ खेलत खात खुदै आए हैं औ अउतै जात हैं । ई अनिच्छित औ अनुपयोगी विदेशी जनसंख्या कइहन नागरिकता देय केर आवाज उठावै वाले नितान्त गलत माँग करत हैं । इनकै बात मानै केर मतलब जनसंख्या केर अनियंंत्रित बाढ का स्वीकार करना , देश मइहन चोर, तस्कर, आतंकवादी, धार्मिक कट्टरपंथी औ उन्मादी लोगन का आश्रय देना औ देश केर राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सम्पूर्ण ब्यवस्था तहस नहस करना है ।
बहू का नागरिकता मागै का मियाद

विदेशी बहू का बिहाव के बाद नागरिकता मागै केर नियम खारिज कइकै विहाव के सात वर्ष बाद नागरिकता मागै केर नियम बनावै केर आवाज उठी है । पहिल बात बिना मियाद केर ई विषय ब्यवस्था तौ पहिले परम्परागत रुप से नजानी कबसे, तकै फिर जबसे कानून बनै लाग तब से यथावत मान्य रहा है । ई तौ पहिले के कानून मइहन रहै, ई गणतन्त्रौ मइहन सर्वदलीय सर्व सहमति से पहिलेन मेर जस रहै आजौ वैसै यथावत है । औ संसद मइहा प्रस्तुत विधेयक मइहन ई बारेम तौ कुछ हइयै नाई, उमा तौ दूसरै बात है, तब इकै बात उठाय के राजनीतिक औ पत्रकारिता बजार गरम करैक मतलब का है ?
अस लागत है कि ई आवाज उठावै वाले लोग ई साइत संसद मइहन जौन बिधेयक पेश है उमा नागरिकता के मूल समस्या पर से ध्यान हटाय के नागरिकता केर आवाज का दबावैक औ प्रस्ताव औ छलफल बिगारैक योजना के अलावा और कुछ नहोय, कि बात टरि जाय चुनाव आय जाय तब देखा जाई का होत है ? इनसे जब पूँछौ कि सात वर्ष भला काहे ? तब कहत हैं कि नेपाली बिटियय जौन भारत मा ब्याही हैं उनका सात वर्ष बाद नागरिकता मिलत है । इनसे पूँछौ कि खाली भारत काहे, औरौ देश मइहा तौ नेपाली लडकियाँ ब्याहीे गई हैं । उनसे तुलना काहे नाय होत है ? भारत मइहन ई मेर ब्यवस्था है ई बताव वाले कत्ते जने हैं जौ विश्व कै सबसे बडा औ जटिल संघीय ब्यवस्था केर भारत केर संविधान पढिन हैं औ सब कानून से परिचित हैं औ भारतीय बहुवन केर सुविधा औ अधिकार के बारेम कतना जानत हैं ?
सात वर्ष से देश का घाटा है ः विवाह होइकै आवैवाली बहू का जब नागरिकता देक पक्का है तब विलम्ब से देशका का फायदा है ? भ्रष्टाचार केर रस्ता खोलैक है का ? ई विलम्ब से होयवाले लाभ हानि के बारेम कोई तथ्ययुक्त आधार है भला ? तथ्यगत तर्क बितर्क काहे नाय पेश भवा है ? खाली मीडियाबाजी है, भ्रम फैलावा जात है । कोई शिक्षित, वैज्ञानिक या और कौनेव क्षेत्र मा नेपाल कइहाँ विशिष्ट सेवा देय वाली बहू – नासा से अंतरिक्ष वैज्ञानिक, हारवर्ड केर स्कालर, एमआईटी स्टेनफोर्ड से टेकनालोजी विशेषज्ञ, मिसाइल लेडी, आय जाय तौ ?नेपाल देश उनकै सेवा लेय के खातिर सात वर्ष सहारा देखै ? तब तक उनकै हुनर औ कौशल पुरान औ अनुपयोगी होइ जाय तौ ? या कोई अंते बोलाय लै जाय तब ?
सवाल जन्मसिद्ध का ः

यातायात के साधन के बिकास के वजह से आजकेर विश्व एक गाँव मेर होइगा है । एक ठाँव केर नागरिक केर अंते देश बिदेस मा बच्चा जन्बब सामान्य घटना होइ गै है । ई मारे जन्मसिद्ध केर सिद्धान्त गलत औ नितान्त अब्यवहारिक माना जात है । विश्व मा बेलायत औ अमेरिका के अलावा सामान्यतया वंशज कै नागरिकता केर प्रचलन है । लकिन नेपाल मइहा पंचायतकाल मइहा गरीब, औ निम्नस्तर कै देखाय वाले वंशजौ तक के कुछ नागरिकन कइहाँ जन्मसिद्ध नागरिकता दइकै समस्या जन्माय के, औ आधा अधूरा काम छोडि के गलती सरकारै किहिस रहै । इके बाद तराईबासी आन्दोलन तह लगावै खातिर प्रजातान्त्रिक सरकार तौ औरौ धूर्ततापूर्ण शब्द “जन्मको आधारमा ” नागरिकता कहिकै २०६३ केर एैन लायके राजनीतिक कार्यकर्ता लगाय के जोर जबरजस्ती मइहन गैर नागरिक तक का पूजा के प्रसाद मेर नागरिकता वितरण करवाइन, जौन बात सर्वविदित है ।
नगरिकता देय के बाद मइहन, जन्म के आधार केर ई नागरिकन केर संतान कइहन नागरिकता देक रोका गवा, ई काम तौ संयुक्त राष्ट्र् संघ के ब्यवस्था के प्रतिकूूलौ है । २०६३ मैहा सरकार कि तौ नागरिकता लगत बनायके आराम से छानबीन कइकै नागरिकता बाँटे होत , औ नाही तौ जब कुछ बुद्धिजीवी “नागरिकता प्रसाद ” के बारेम शुरु से आवाज उठावत रहंै, तौ छानबीन आयोग बनाय के हजारन जौन गलत हैं उनका हटाय के जउन वास्तविक रहैं उनका राखत तौ समस्या नाय रहै । बाद मा सब पार्टी तौ शासन किहिन हैं, चाहै जे कोई जब चहितीं तब आयोग बनाय के नागरिकता छानबीन कै सकत रहै । लकिन १६ वर्ष तक कोई कुछ नाय किहिन, अब २०७९मा निर्वाचन है तौ कुछ नेता अभिनेता औ भजनमंडली चिचियात हैं । सब वोट केर राजनीति करत ह,ैं औ सत्ता मैहन रहे पर वहै चीज ठीक, औ बाहेर रहे पर वहै बेठीक होइ जात है । जन्मसिद्ध के सन्तान का अतने साल रोके रहे से फायदा का भवा । कतने दिन रोकै रहिहौ । उनके सन्तान का तौ नागरिकता बिना दिहे सुखै नाइ है । यद्वपि कम्युनिष्ट देशन मा तौ नागरिकता विषय मइहा अत्यधिक कडा नीति है । नेपाल तौ अब न प्रजातान्त्रिक न समाजवादी न कम्युनिष्ट । बिना नीति, बिना सिद्धान्त केर देश होइनगा है ।
नागरिकता समस्या सीमा से सम्बन्धित ः नागरिकता समस्या देशके सीमाना के खुल्लापन से जन्मी है । नागरिकता केर समाधान औ सीमाना केर नियंत्रण एक साथ होई तब बात बनी । ई देश बिना पल्ला दरवाजा के तौ हइयय है, इमा तौ टटिया देवाल तक नाइ है । हियाँ को आवा, कहाँ से आवा, कबतक रहा, का किहिस, लौटि के गवा कि नाई, लौटि के जाई कि नाई ? किके हियाँ रहत है ? कोई नाय जानत है । कोई रिकार्ड नाय रखा जात है । अपन परावा शत्रु मित्र केर पहिचान नाइ है । किकै देश, कैसा देश कोई सटीक उत्तर नाइ है । उत्तर देय केर जिम्मेदारिव लेयक कोई तयार नाइ है, इके बारेम कोईका रुचि नाइ है । ई मारे नेपाल देश मा मजबूत टटिया बाती पल्ला दरवाजा कायदे से लगाय के ताला चाभी अपने हाथेम राखैक जरुरी है । भले वीसा पास्पोर्ट नलगाव लकिन पहिचानपत्र देखके निर्वाध आवागमन करैवालेन कइहन चौतर्फी सीमाना मइहा आवश्यक विवरण केर लगत अध्यावधिक राखैक चाही । यहिक साथे स्थानीय निकाय मइहा नागरिक औ गैरनागरिक केर अद्यावधिक पारिवारिक लगत राखै केर व्यवस्था अगर कीन जाय तौ नागरिकता के साथ साथ अन्य कामन मइहौं बहुत सुबिधा होइ जाई ।
( लेखक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी, प्राध्यापक, अधिवक्ता औ राजनीतिशास्त्र कै अध्येता हैं )
इति

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