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वेद पुरान सबै पढि लीना, कथा कहानी सब सुनि डारा ।
नारिक देबी कहिकै भइया, किहौ आरती पूजा भंडारा ।।
शुरु करत हौ काम कोई जब, पूजत हौ अम्बे गौरी ।
गंग नहाएव गइया सेएव, पूजेव सीता, औ शेबरी ।।
लक्ष्मी खातिर सुनेव भागवत, व्रत रह्यो निराहारी ।
सरस्वती का पूजिके होइगेव, बुद्धिमान संसारी ।।
सावित्री, गायत्री, अनुसुइया, जब भईं तुमरी माता ।
नारी कइहां देबी बनाइके, जगमा भयो बिख्याता ।।
तब काहे बिटिया पेटेम मारत, लिंग भेद कहि जाता ।
देबी पूजौ, देबी मारौ, कौन विवेक है भ्राता ।।
अपन लाभ औ सुखके खातिर, तुम हौ करत बतकही ।
करनी औ कथनी कै अंतर, देखि लेव सब कोई ।।
पाप पुण्य कै ई परिभाषा, खूब बनाएव भाई ।
गर्भै मइहा बिटिया मारौ , देखेन तुमार प्रभुताई ।।
पुरुष केर पौरुष है ,जौ, तौ, नारी केर सम्मान करौ ।
रथके दूनौ पहियन कइहां, एक समान निर्माण करौ ।।
तब तौ गाडी चली बराबर, सुख और आराम से ।
दुनिया मइहां इज्जत पइहौ, नारी के सम्मान से ।।
अयोध्या प्रसाद श्रीवास्तव
(लेखक पूर्वप्रशासनिकअधिकारी,प्राध्यापक,अधिवक्ता,राजनीति , दर्शनशास्त्रका अध्येता ह )