बर्दिया मे कायस्थ October 1st 2020
ब्रिटिश सरकार ने गोर्खालियो से सन् १८१६ मे सुगौली सन्धि करते समय इसके तराई क्षेत्र को भी जबर्जस्ती हथिया लिया था । गोर्खा (नेपाल)सरकार इसे वापस मांग रही थी। इसी बीच भारत मे सन् १८५७ के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने नेपाल सरकार से सैनिक सहायता ली , जिसमे जीतने के फलस्वरूप नेपाली प्रधान मन्त्री जंग बहादुर राणा को यु पी के बहराइच – लखीमपुर जिलों से सटे हए उत्तरी पश्चिमी तराई को सौगात का नाम देकर सन् १८६० मे वापस कर दिया। इस भूमि को ” नया मुलुक नाम दिया गया और बाद मे यह नेपाल का आज का बाँके, बर्दिया, कैलाली ,कंचनपुर चार जिला है ।
उस समय नेपाल तो नेपाल ,भारत मे भी यातायात, संचार आदि बहुत ही सीमित सुविधाएँ थी,। नया मुलुक तो सब जंगल और उजाड ही था । केवल दक्षिणी किनारे पर कुछ बस्ती थी । न तो ठीक से अन्न उपजता था न तो पानी के लिए पर्याप्त कुएँ ही थे। यहाँ सम्पूर्ण क्षेत्र मलेरियाग्रस्त और हैजा से ध्वस्त था। जाड़े मे गौरैया चिडिया को भी जूड़ी आती थी और देखते देखते तड़प कर मर जाती थी। गर्मी मे हैजा और चेचक से एक पर एक लाश निकलती थी। इसलिए न यहाँ की गांव की आवादी बढ पाती थी और न तो भारत या नेपाल से कोइ आने को तयार ही होता था।
नेपाल मे पश्चिम से पूर्ब जाने के लिए स्वदेश मे यातायात का कोई साधन और सड्के नही थी इसलिए सीमावर्ती भारतीय रेल का सहारा लिया जाता था। रक्सौल तक भारतीय रेल उपलब्ध होने के बाद नेपाल के अधिकारियों को काठमांडू जाने वालों को परमिट देने के लिए बीरगंज प्रवेश मार्ग रखा गया । इन्ही लोगों को नेपाल के लिए पढे लिखे और कृषक कारीगर सभी तरह के लोगों को नेपाल मे बसाने की जिम्मेदारी दी थी। उस समय के विकासशील बजार वीरगंज मे आसपास के गावो से शिक्षा और रोजगार के लिए युवा पुस्ता वीरगंज मे दिखता था । सन् १९०८ या ९ मे अधिकारियों ने उर्दु, फारसी, अङ्ग्रेजी पढे हए १९ वर्सीय त्रिलोक नाथ कायस्थ को सम्पर्क मे लिया और माल अड्डा ( तहसील) मे शुरु मे नौसिन्दा नियुक्त कर के नया मुलुक भेज दिया बाद मे सहायक स्तर के मुखिया पद पर नियुक्त किया राणाकालीन यह बहुत महत्वपूर्ण पद था। ( इसलिए राणा काल मे कायस्थ को न्याय मे बिचारी और प्रशासन मे मुखिया से ऊचा पद न देने का नियम था )
कुछ समय पश्चात बडे भाई कमला को अयोध्या की तरफ से कुछ थारु समुदाय को लेकर नया मुलुक जाने को राजी कर लिया। उन्हे नापी मे नियुक्त किया गया। वि स १९६७ ( सन् १९१०/११ ) मे बर्दिया को पहली बार नापा गया और नक्शांकन हुवा । कुश, गडरा, झपटी के मैदान और जंगल झाडी को नापना सम्भव नही था इस लिए और अधिकारियों तथा नव नियुक्त राणा परिवार से सम्बन्धित जमीनादारों / किटकिनदारो आदि के सहयोग से सरपट नापी ( जहा जैसे सम्भव हो जैसे तैसे मोटामोटी नापना ) बर्दिया जिला नापा गया और माल के त्रिलोक नाथ ने अभिलेख प्रणाली बनाई जिसमे जमीन का प्रकार और दर्ता खरीद बिक्री पट्टा आदि की व्यवस्था हुई।
इन दो भाइयो ने अपने दो छोटे भाई ज्वाला और बाला को , राजी / नाराजी जैसे भी हुआ बुला लिया । कुछ वर्षों मे बस्तियाँ और बसी । इन चारों ने भारतीय रेलवे स्टेशन से सब से नजदीक पदुमपुर, गोडियन पुर्वा बसाया, अपने लिए कोठार बनवाए। कमला प्रसाद ने अलग ही निमकोठिया मे कोठार बनवाया सरकार ने इन लोगो को गाँव बसाने , गांवो की हिफाजत और उन्नति करने, तथा मालपोत देनेके लिए जिम्मेदार (जमिनदार ) बना दिया और काफी बडा क्षेत्र और बहुत से गांव इनके आधीन हो गए।
कर्मचारियो ने जिला मुख्यालय के लिए जमीन देखी व्यापारी बुलाए गए बसाए गए , वि संवत १९९४ ( सन् १९३८ ) मन्दिर ,स्कूल, माल, वन, अदालत , थाना सब बनने लगा और ” गुलरिया ” बजार, जो आज बर्दिया जिला का मुख्यालय है , का जन्म हुआ। बार्डर के किनारे के कुछ प्राचीन बस्तियो मे मुगल शासन से ही कुछ जमीनदार बसे थे जिसमे कही कही एक आधा कायस्थ भी थे। जिनका परिवार अधिकान्सतया भारत मे, और कुछ समय नेपाल के नया मुलुक मे रहता था , इन्ही लोगो मे ये कायस्थ लोग घुल मिल गए ,और त्रिलोक नाथ ने जमुनी मे पहली शादी की , उनकी पत्नी की अल्पकाल मे मृत्यु हो जाने पर उनकी गणेशपुर मे दूसरी शादी विष्णु देवी से हुई। और भाइयो की भी इसी क्षेत्र नेपाल भारत मे शादी हुई। केवल बर्दिया ही नही दूर अन्य जिलो तक इन जमीनादारो का नाम और यश फैल गया।
कमला बाबु उस समय के राणा शासन के खिलाफ काठमाण्डु के बडे नेताओ के सम्पर्क मे आए ” प्रजा परिषद ” मे लगे (जो बाद मे नेपाली कांग्रेस बना ) । एक तन्त्रीय निरङ्कुश राणा शासन मे इन पर राजद्रोह के तमाम मुकदमे चले और वि स १९८९ (सन् १९३३) मे १७ मुकदमो मे इन्हे अपराधी घोषित करके काठमांडू मे जेल मे डाल दिया। सरकार ने मृत्यु दण्ड देना चाहा लेकिन दर्बारियो ने शायद बिहार का उदाहरण देते हुए कहा की कायस्थ पूजा पाठ करवाने वाला ब्राह्मण होता है इस लिए मृत्यु दण्ड नही दिया जा सकता है तो प्रधान मन्त्री ने इन्हे राजधानी मे दामल सजाय ( नितान्त कठोर जेल जिसमे बन्दी के गले मे लोहेका गोला लटका कर रखते थे ) दिया । भाइयो का कोइ जोर नही चला और ७ वर्ष की सजा हुई। जेल मे रहते हुए इनकी तबियत बिगड्ते देखकर वि स १९९३ (सन् १९३३ ) वीरगंज के रास्ते से देश निकाला कर दिया।
बनारस , अयोध्या, बेतिया और पिथौरागढ तक तमाम शहर मे नेपाली नेताओ ने आश्रय ले रखा था बहुत तो घर जमीन लेकर केन्द्र बनाकर नेपाली और भारतीय क्रान्तिकारियो के साथ् रहते थे । कमला बाबु बेलघाट मे अस्वस्थ्य अवस्था मे भी आजीवन सक्रिय रहे। भारतीय नेताओ ने निर्वासित नेपाली नेता और विद्यार्थियो से कहा था कि ” पहले मदत करके भारत स्वतन्त्र करवाओ फिर नेपाल भी स्वतन्त्र करवा लेगे ” सभी नेपाली लोग १९४२ के आन्दोलन मे पिल पडे थे । ये बनारस मे संगठन बना रहे प्रख्यात नेपाली नेता विशेस्वर प्रसाद कोइराला और पुष्पलाल के समकालीन तो थे, लेकिन उन्से कैसा कितना सम्बन्ध रहा और भारतीय स्वतन्त्रा संग्राम मे क्या किया यह बात बताने वाला आज तक कोई नही मिला है । यह नेपाल नही लौटने पाए । जेल की यातना,रोग, ज्यादा दिन शरीर झेल नही पाया और सन् १९४६ सेप्टेम्बर ( वि स २००३ आश्विन १२ गते ) बेलघाट मे इनकी मृत्यु हो गई ।
त्रिलोक नाथ तो पढे लिखे होने के कारण नेपाल दरबार के नजर मे थे इसलिए प्रजातन्त्र मे , वि स २०१५ ( सन् 1959 ) की संसदीय व्यवस्था आने तक हाई कमान ने पहाडी जिलो मे भी काम करने को भेजा। सन् १९६० मे राजा महेन्द्र ने प्रजातन्त्र हटाकर शासन अपने हात मे लिया, जिसे समर्थन न करने के कारण ये बर्खास्त कर दिए गए। सन् १९६४ मे भूमि सुधार मे जमीनदारी पटवारिका छिन् गई और जमीन भी ज्यादातर जब्त हो गई। ये बीमार रहने लगे और सन् १९६८ मे गणेशपुर मे इनकी मृत्यु हो गई।
(२)
यु पी के आजमगढ के पास बैदौला से मूल पुर्खा ब्रिजबंधन लाल बेलघाट गए । उनके वंसज गया प्रसाद कायस्थ , उनके पुत्र – जमुना प्रसाद ,जयन्ती प्रसाद। जमुना से – कमला प्रसाद, त्रिलोकनाथ ( लल्लु बाबु), ज्वाला प्रसाद। जयन्ती से बाला प्रसाद।
कमला से पहली पत्नी से – मुक्ता प्रसाद। पहली के स्वर्गवास के बाद दूसरी से – सत्यनारायण, जयनारायण,राम प्रसाद , हनिवन्त लाल , लड़की – मुट्टुर , सुमिरण । त्रिलोक नाथ के पहली पत्नी से – सूरजपती ( बस्ती मे शादी ) , दूसरी पत्नी से – अनारकली ,( सिसवारा), फूलकली ( नानपारा ) , चम्पाकली ( नानपारा ) शादी। अयोध्या प्रसाद, ( रामजी या हल्लन बाबु ) , रमेश चन्द्र ( झुल्लन बाबू ) दोनो भाई बस्ती गिधार एवं महादेव घुर्हू से शादी।
ज्वाला प्रसाद से – जगदम्मा प्रसाद,( हत्या हो गई) । भगौती प्रसाद , हरिराम। पुत्री – यज्ञमूर्ति, प्रभावती , मुन्नी ( तिनो बहराइच मे शादी ) बाला प्रसाद से – प्रेम पियारी , शोभा वती ,(दोनो की शादी लाला पूरवा ), मुनिया। नवल किशोर और राम चन्दर।
कुल ११ भाई १२ बहने कायम रहे।
मुक्ता प्रसाद से – चार बेटियाँ- सावित्री, कृष्णा , शारदा , चन्द्रा ( नानपारा, बहराइच,पिकौरा बस्ती , गोण्डा से शादी ।
सत्य नारायण से – राजकुमार, जगदीश, हरिहर , हीरा , रमेश,/ बेटी किरण और मीना।
जय नारायण से – शैलेश, राजू। बेटी प्रेमा ।
राम प्रसाद से – वीरेन्द्र, राजेन्द्र , देवेन्द्र, धर्मेन्द्र। बेटी – पल्लवी।
हनिवन्त लाल से – माया, मीरा , मंजु, जानकी ,पिङ्की , रिंकी , गुडिया। मनोज , मझले, छोटु ।
अयोध्या प्रसाद से – कन्चन ( क्रिश्नानगर ,अब अमेरिका ) , गुञ्जन ( बनारस ),आदित्य पंकज , आशुतोष ( अमेरिका )
रमेश चन्द्र से – दीपेन्द्र , रुपेन्द्र ( अमेरिका ) , रजनी ( तौलिहवा )
भगौती प्रसाद से – शोभाकान्त , प्रेम ( हत्या हो गई ) , दद्दन, मिथिलेश , ग्यान ( गुलरिया ), गुड्डी (बहराइच )
हरिराम से – दिलीप, विनोद , प्रदीप, आलोक। , रीता, ( नानपारा) नीता ( गुलरिया )
नवल किशोर से – राजेन्द्र प्रसाद ( नेपाल का प्रशिद्ध नेता , आतंकी माओवादियोंमाओ ने हत्या कर दी ) राजकुमार। बेटी -कुन्नी
राम चन्द्र से — सुशीला, सरिता , सुनीता , मिथिला, सोमती। आनन्द , अनिल , अनित।
( कमला के निर्वासन से जयनारायण राम प्रसाद, हनिवंत बेलाघाट मे रहे। बाद मे हनिवंत लाल, प्रोफेसर राजेन्द्र प्रसाद और धर्मेन्द्र नेपाल मे रहे। ए डी एम देवेन्द्र और वीरेन्द्र दो लोग आज भी बेलाघाट मे हैं। और नेपाल मे आते जाते रहते है। बाकी सभी लोग तो पिता पुर्खो के समय से ही जन्मजात नेपाल मे ही है।
( कमला प्रसाद के अवसान के बाद चार भाइयो का हिस्सा बटा तो नेपाल की सभी जमिनदारियाँ कमला और त्रिलोकनाथ के हिस्से मे २- २ आना (12.50%, 12.50% ) पन्ती और ज्वाला बाला को ६, ६ आना ( 37.50%, 37.50 % ) पन्ती मिली। त्रिलोक नाथ के पुत्र नही थे और गणेशपुर की जमिनदारी और १४ गांव पटवारिका ससुराल का लिलाम मे लिया था , इस लिए पर्याप्त सम्पत्ति को देखते हुए इन्हे ज्यादा की जरुरत नही थी,न तो सम्हाली ही जा सक्ती थी। और कमला बाबु के पांच पुत्र और होने वाले संतानो और उनके आश्रित बेलघाट मे रहने वालो के लिए कुछ अधिक की आवश्यकता थी इस लिए बेल्घाट की समस्त कृषि भूमि उनके पांच पुत्रो के जिम्मे गई। बेलघाट का भवन कमला और त्रिलोक नाथ के हिस्से मे रखा गया , लेकिन नेपाल मे राणा शासन हटाओ आन्दोलन मे कोइ भी भारत मे निर्वासित हो सकता था इसलिए यहाँ शर्त है कि भवन मे कभी भी चारो भाइयो का कोइ भी व्यक्ति शरण ले सकेगा, भवन को बेचने या तोडफोड का अधिकार किसी को नही होगा , रहने वाला मरम्मत करवाएगा और सुरक्षित रखेगा )
त्रिलोकनाथ के शुरु और बीच मे जो पुत्र जन्मे, मरते रहे। अन्तिम अवस्था के प्रथम पुत्र को बचाने के लिए अधिकारियों ने जन्म के तुरन्त बाद रामजी नाम करण करके जमिनदारी और पटवारिका दर्ज करके सत्यनारायण को कार्यकर्ता नियुक्त किया था। वह रामजी उर्फ अयोध्या और बाद का रमेश भी वच गया, सो दो भाई हैं ;। अयोध्या ने प्रशासन मे प्रशासकीय अधिकृत, सरकारी वकील , भ्रष्टाचार निवारण अधिकारी जैसे पदो पर रहकर काम करते हुए जिला की आवश्यकतावश मुख्यालय मे नेताओ और उच्च प्रसासनिक अधिकारियो के साथ ” बबई बहुमुखी कैम्पस ” की स्थापना और प्रारम्भ के प्रथम कक्षा से निशुल्क पढाते हुए शुरुवात की और अतिरिक्त समय मे २७ वर्ष तक आवश्यकता अनुसार के विषय पढाकर सेवा दी। आज यह सरकारी महा विद्यालय अपनी पूरी गरिमा पर दूर दूर तक प्रशिद्धि पा रहा है। जिसके कारण संसथापको को भी यश मिला है।
कमला प्रसाद तो राणा सरकार के विरुद्ध जीला मे प्रथम और सम्भवत कायस्थ जाति मे नेपाल मे ही प्रथम क्रान्तिकारी , देश निष्कासित स्वतन्त्रता सेनानी थे। लेकिन त्रिलोक नाथ को राणा सरकार ने प्रकाश स्तम्भ के रुप मे प्रयोग मे लिया , जिन्होने सरकारी प्रबन्धन और व्यवस्थापन किया।ये अपने समय के बहुत बडे विद्वान के रुप मे विख्यात हुए। इसके साथ् मे ये महादानी भी कहे गए जिनके शरीर पर कपडा भी कम ही वच पाता था। उसी स्मृति के कारण इनके पुत्रों के द्व्वारा मुख्यालय मे जिले के प्रथम हाई स्कूल के लिए भूमि दान, गणेशपुर मे मन्दिर के लिए काफी महगी एक एकड भूमि दान , स्कूल, पुलिश थाना , और दलित तथा गरीब लोगो को घरबार के लिए भूमि दान, चौक निर्माण , बस प्रतिक्षालय निर्माण आदि हो चुके है। वृद्धाश्रम के लिए प्रयत्न हो रहा है।
ज्वाला प्रसाद और बाला प्रसाद भूमि आवाद कराने, बस्ती बसाने और विकास कार्यों को आगे बढाने मे सरकार के साथ सहयोगी भूमिका मे जन विश्वास प्राप्त करते रहे इसलिए ख्याति प्राप्त जमीनदार हुए। आज का चमकता सितारा यह नयामुलुक का एक बडा भाग इन चार भाइयों के सेवा सहयोग से विकसित हुवा है।
सम्पूर्ण वृहद परिवार यद्दपि समय चक्र से कुछ बुरी घट्नाओ मे दुख मे पड्ने पर भी कुल मिला कर अच्छी अवस्था मे खुशहाल है।
आदित्य पंकज आश्ट्रेलिया से पोस्ट ग्रेजुएट है और पत्नी निधि नेपाल मे कृषि आफिसर है और प्लान मे पीएच्डी के लिए न्यूजी लैण्ड मे शिक्षा ले रही है। आशुतोष और उनकी पत्नी रिति दोनो हारवर्ड से पोस्ट ग्रेजुएट है और अपनी कम्पनी चला रहे है। रमेश के दोनो पुत्र उच्च शिक्षा प्राप्त करके दीपेन्द्र कृषि अफिसर है और रुपेन्द्र अमेरिका मे C A है। दोनो कि पत्नियाँ प्रियंका और अन्जु उच्च शिक्षा प्राप्त है।
शु*****भ*****म