आज के प्रजान्त्रिक जुग मा सब कोई अपने बोली भाषा पहिरन धरम संस्कार कइहाँ बचावैक औ सुग्घर बनावैक चाहत है। इत्थिर बात है अवधी भाषा केर। अवधी बोली होय कि भाषा होय ? ई बात पर हम नाय जाइत है। हम खाली ई भाषा केर शुद्धता केर बात कीन चाहित है। पहिल बात तौ ई होय कि नेपाल के परोस – डांडा उइ पार भारत औ तिब्बत मइहन जउन बोली, औ चलन है वही मेर बोली, चलन औ मनई ई पार डांडेक किनारे नेपाल केर गांव बस्ती मइहाँ हैं । वैसै तौ एक कह्कुत है कि चार कोस पर बोली बदलि जात है। पर्वते भाषा पच्छु से लैकै पुरुब तक कुछु नाइँ तौ पचास मेर होई। यही मेर तराई मईहाँ अवधी, भोजपुरी औ मैथिलीउ एक्कै मेर नाइँ है। जैसै हम बर्दिया मइहाँ हन औ खरी अवधी बोलित है। लकिन नेपाल गंज या दाङ्ग के लोगन से कुछ फरक होइ जात है औ हमार ‘जाइत है’ ‘खाइत् है’ के जगह तौलिहवा भैरहवा मइहाँ भारत नौगढ बस्ती केर बोली ; ‘जाइला ‘, ‘खाइला’ होइ जात है जौन कि निहाइत अलग है।
ई तौ चार कोस वाली बात होइ गय। लकिन अब एक्कै तिर कै फरक देखौ। मजेदार बात तौ ई है कि एक्कै जघा , एक्कै भाषा दुइ तीन मेर बोली जात है। इमा जातीय बोली केर गुन रहत है। बर्दिया केर हम गांव वाले जौ कहिबै कि ‘दहिउ मइसे मस्का निकारौ ‘ ‘ बरतन घर मा धै आव ‘, ‘ चूल्हा बारौ ‘ तौ हमरे परोसै केर, औ चाहै आने गांव केर अहिर औ गोडिया ( औरउ कोइ होइ सकत है ) कहिहैं ‘ दहिउ मइसे मस्का निसारौ ‘ बासन धै आव , झूना बारौ । ई मेर फरक है। तब इका भाषा न कहिकै बोली कहैक मन लागत है। ई मेर औरउ कैयों समस्या के वजह से एक मानक भाषा केर जरुरत परत है तब नेपाली होय चाहै हिन्दी बोली लिखि पढी जात है।
अब बात कइहाँ तनिक गहिरे लै जायक चाहित है। चलौ महेन्द्र नगर से लैकै झापा तक चाहै जौन तराई भाषा होय , इ साइत हम अवधिन पर बात करित है, भले अलग अलग बोली जात है , लकिन मीडिया मइहाँ जहाँ केर अवधी बोली जाय, हुवाँ के लोगन के मेर बोली जायक चाही। इका लौनिया दैकै समझावब ठीक रही। मान लेव नेपालगंज के अवधी मइहाँ कोई लेख लिखा जाय, टीवी या रेडियो पर कोइ समाचार या कार्यक्रम या प्रचार कीन जाय तौ नेपालगंज के लोगन केर बोली मइहाँ कीन जाय। अब देखा ई जात है कि सहज अवधी मइहाँ प्रसारण नाय होत है , उमा मिलावट रहत है, खास कहौ तौ नेपाली मिलावट। औ अस लागत है कि नेपाली कइहाँ अवधी अनुवाद कीन गा है।
नेपाली मइहाँ ‘ भन्ने ‘ ‘ भनेर’ लगाय के बात जोरी जात है लकिन अवधी या हिन्दी या कोइ तराई भाषा मइहाँ ‘ कि ‘ लगाय के बात जोरी जात है। इ मारे ‘भनेर’ मेर कहिकै नाय जोरैक परत है लकिन मीडिया जोरत है । जैसै ‘ बिटिया महतारी कइहाँ फोन कइ कै बताइस कि हम भात खाय लिहा है। ‘ ई बात कइहाँ मीडिया कहत है ‘ बिटिया फोन मइहाँ महतारी से भात खाय चुके हन कहिकै बताइस ‘ कहब औ बताइब तौ एकै क्रिया पद होय तब दुइ दफे काहे बोला गवा ? ई तौ सोझै देखात है कि ई बात नेपाली ‘ छोरि ले फोन मा आमा लाई मैले भात खाइ सके भनेर बताइन । ‘ केर अनुवाद होय। और देखौ। एक कार्यक्रम मइहाँ उद्घोषक बोला ‘ ई कार्यक्रम का सुनिकै बैठे हुए सभी भाई बहिनन कैहन रामराम सलाम है। ई तौ सोझै ‘ ‘यो कार्यक्रम सुनेर बसी रहनु भएका ………’ अवधी अनुवाद होय लकिन अनुवाद गलत है काहे से रेडियो सुनै केर औ बैठै केर कोइ सम्बन्ध नाइ है। रेडियो सुनै केर चीज होय। ई मारे ‘ ई कार्यक्रम का सुनै वाले सभी …….. कहे से बनत। ‘ उ अस्पताल के मोहारेम दुइ घण्टा से ठाढ होइकै बैठा है ‘ कतना गलत वाक्य है। कोइ ठाढ होइकै भला कैसे बैठी ? ‘ दुइ घण्टा से ठाढ है ‘ कहे से होइ जात या तनिक दबाव देक होत तौ ‘ठाढै है ‘ कहे से बनत । जादातर यही मेर बोलत हैं।
खाली वाक्य गठन केर बात नाइँ है , मीडिया मइहाँ नजानी कतने नेपाली या परिष्कृत हिन्दी केर शब्द बोले जात हैं, मैथिली मइहाँ तौ औरउ जादा मिलावट करत हैं । रेडियो मइहाँ एक प्रचार आवत रहै। मेहरुवन के गरु पाँव पर रहै। इका नेपाली से अवधी बनावा गा रहै औ जरूर कोइ नेपाली भाषी बनाइस रहा होइ जीमा कहत रहै लक्ष्मी तुमार तौ ‘ पेट ‘ उचियान है कहैक चाहत रहै लकिन पेंडू उचियान है कहत रहै। उका सुनिकै अस लाज लागै कि मेहरुवै औ बिटिवय लजाय जांय रेडियो बन्द कै दीन जात रहै तब हम रेडियो स्टेशन कैहाँ पत्र लिखा रहै।
हमलोगन मैहन नेपाली भाषी लोगन कैहन जादा जानकार मानै केर सोंच बनी है वही मारे हमरे बोली भाषौ मैहन उ लोग चाहै गलतौ बोलै लिखैं तहूँ हमलोग सही मानि बैठित है। इ हमार कमजोरी होय , उनकै कौन दोष ? हम उनकै देखादुनी मकई, बढई, सोमई , बुधई कैहन मकै, बढै, सोमै, बुधै लिखै लागे हन । काहे भला ? हमरे संस्कृति के शब्दन केर बोलै केर ढंग औ लिखैक तरीका तौ हम जानित है न ? फिर काहे हम गलत रास्ता पकरे हन ? ई याद राखैक चाही कि सब भाषा केर आपन आपन शैली औ विशेषता होत है। इका दोसरेपर लादैक न चाही। लदिहौ तौ गलत होइ जाई।
एक धारावाहिक टेली फिल्म अवधी मइहाँ आवत रहै। उमा कुछ पात्र तौ तराई बासी औ जाति के हिसाब से ठीक रहैं लकिन बाकी नाम काम जात के हिसाब से बिल्कुल बेकार रहै। ठाकुर परिवार रहै , ठकुराइन कोइ मंगोल मूल की औरत रही। उ भला ठकुराइन कैसे देखाई ., अटक अटक के अवधी बोलै। मीडिया कइहाँ ई सोंचैक चाही कि ई चीज नैपालै नाही भारतौ के मनई देखत होइहैं । ई मेर पात्र, भाषा, बोलै केर तरीका देखि के कतना हंसत होइहैं । ठकुराइन, नौकरानी, पुरोहित , केर छवि पात्र मइहाँ देखाएक चाही औ किस्सा कहानी चाहै जो कुछ होय , वही संसकृति के भितरै रहैक चाही। नेपाली केर अवधीम डबिङ्ग होय तौ बात अलग है, नाही तौ पहाडी जनजीवन केर किस्सा, पहाडी पात्र से अवधी मैहा देखावा जाय तौ बात नाय बनत है । रेडियो या टिवी चैनल वालेन का चाही कि जौन भाषा केर प्रशारण होत है भरसक वही भाषा संसकृति केर प्रसारक राखै या जौ कोइ दोसरे भाषा संसकृति केर प्रसारक होय तौ उ संसकृति मइहाँ बिल्कुल सराबोर होयेक चाही।
अब फिर भाषा औ शब्द केर बात। देशी जबान , औ पहाडी जबान मइहाँ भेद है। नेपाली मइहाँ अदच्छे ,( अध्यक्ष ) समिछ्या, (समिक्षा ) सिच्छ्या , (शिक्षा ) आदि बोलत हैं। ख घ, छ , झ, ढ , ध , भ , क्ष , कईहाँ क , ग , च , ज, ढ द, ब , कहि जात हैं , ‘श’ के जघा पर ‘स’ औ बडी ‘ई ‘ के जघा पर छोटी ‘इ ‘केर मात्रा लिखत् चले जात हैं। नेपाली मइहाँ एक पक्ष कहत है कि जस बोलौ तस लिखौ दूसर पक्ष कहत है कि नाही, बोली पर जैहौ तौ हर जघा अलग अलग नेपाली बोली जात है तब तौ समस्या आय जाई ई मारे एक मानक तौ रखहिक परी , व्याकरण कइहाँ तौ पकरैक पर्बै करी। तौ ई विवाद से दुइ पक्ष बनिगा है।
अब तराई भासिन केर समस्या देखौ। तराई शिक्षा मइहाँ तौ पाछे हइयय है, ई मारे नेपाली भासिन केर नकल सहजै करै लाग है औ समस्या अपनेव भाषम लै आवा है । वैसै तौ अवधी मइहाँ श, क्ष , त्र, औ ज्ञ नाइँ है , औ काव्य मैहा इन्कै प्रयोग करै नकरै केर छुट है , लकिन काहे से अवधी हिन्दी आदि भाषा ( नेपाली सहित ) संस्कृत से निकरी हैं औ ई वर्ण मानक भाषा मइहाँ होय के वजह से बोला चाहै जस जाई लेकिन लिखत मइहाँ इनका नाय छोडा जात है। नाय छोडा जाय सकत है।
इमा नमुना खातिर कुछ शब्द औ उनकै सही औ गलत अर्थ नीचे लिखित है। ई लेख ‘नेपाली भाषा को दुर्दशा’ हमरे वेव साइट मईहाँ पूरा पढा जाय सकत है।
विद्यालय = ज्ञानकेर घर ! विध्यालय = छेद करैक, मारैक जघा या ,बधशाला। विद्यार्थी = ज्ञान प्राप्त करैया व्यक्ति ! बिध्यार्थी =बलि देय के खातिर लावा गवा i वीर = बहादुर। बीर =जंगली सुअर। उद्योग =उत्पादन स्थल ! उध्योग =खाल काढै केर। शिक्षा =ज्ञान बुद्धि ! सिछ्या =+। भिक्षा = देयदान ! भिछ्या = +। कक्षा = श्रेणी ! कछ्या =+। समीक्षा = सिंहावलोकन ! समिच्छ्या =+ । प्रशिक्षक= सिखवैया। प्रसिच्छेक= +। मही=पातर मट्ठा ! मोही या मोई = खेत जोतैया +। आत्मसात = भित्तर से मानैक ! आत्मसाथ = +। अतिथि =पहुना ! अथिति = +। समृद्धि =सम्पदा सम्पन्न। सम्बृद्धि = समान रुप से बढै वाला । संरक्षण = देखभाल , बचावट ! समरक्षण = एक समान रक्षा कर। वार्ड = खण्ड ! वडा= इ निरर्थक शव्द नेपाल भर प्रचलित होइगा है कि अब सही शव्द मेर लागत है ।व्यवस्था = प्रबन्ध ! बेवास्ता = मतलब न रखा जाय। (टीवीउ पर एक के जघा दुसरशब्द सुनैक मिला है )परिणाम = नतीजा ! परिमाण = संख्या या तौल नाप। आशीष = शुभेक्षा,आर्शीवाद ! आशिक = प्रेमी, दीवाना। गर्व = घमण्ड ! गर्भ = भीतर, भ्रूण। सौरभ = सुन्दर, उत्कृष्ट ! सौरब =? , सान्दर्भिक — – सान्दर्विक —-? देवनागरी = लिपि केर नाम ,देवनागरिक =देवता केर आदमी ! अवहेलना = उपेक्षा ! अपहेलना = +। अध्यक्ष = संगठन प्रमुख ! अदच्छे, अदक्ष्य =? लक्ष = अन्तिम प्राप्तव्य ! लक्ष्ये =?, क्षति = हानि ! क्षेति, छेति =? क्षमा = माफी ! क्षेमा, छेमा = ?। उर्दू ,अरबीका शब्द – कुर्सी = चेयर ! कुर्ची, मेच = + । अफसोस = चिन्ता ! अफसोच= +। आजिज = अगुतई ! आजित =? मिजाज = मनोदशा ! मिजास =? जानिसकार = जानै बुझैवाला ! जानिफकार =? शपथ = प्रतिज्ञा। सफत =?
हम सिछ्या , भिछ्या , समिछ्या, अदछे, न बोल सकित है न बोलै केर नकल करैक चाही। इमारे आज के समय मइहाँ जबकी नेपाली भाषा मइहाँ विवाद है, तब हमका उ भाषा केर शब्द ग्रहण करै से पहिले आपन मानक भाषा पर मज्बूती बनाए रहेक चाही नाइँ तौ एक दिन अस आई कि अपन अपन भाषा संसकृति केर संरक्षण करै केर नारा धरा रहि जाई औ हमलोग अन्ते बहि जैबै।
( लेखक पूर्व प्रशासनिक अधिकारी , प्राध्यापक औ अधिवक्ता होंय )